Saturday, February 9, 2019

यादें !



ये कहानी एक १० साल का लड़का और उसके पिता जी की हैं। उस लड़के का नाम राजू था , राजू बचपन से ही अपने परिवार के प्रति बहुत ईमानदार ही रहा करता और अपने से बड़े का आदर सम्मान करता। घर मिट्टी और गरीब परिवार से था राजू। राजू के पिताजी राजू को प्रतिदिन विद्यालय जाने को कहते थे रविवार को छोड़कर , और राजू अपने पिताजी की बातें को मान विद्यालय जाने के लिए तैयार खुद हो जाता था , राजू अपने सहपाठी के साथ विद्यालय जाता था। राजू अपने कक्षा में हमेशा उत्तीर्ण होता रहता था। राजू के पिताजी खेतों में काम के लिए जाया करते थे , क्युकी राजू के पिताजी किसान थे। राजू  के पिताजी अपने बेटे राजू को एक नेक ईमानदार  अफसर बनाना चाहते थे। 
                       एक दिन राजू अपने पिताजी को खेत जाते देख राजू को भी अपने पिताजी के साथ खेत में जाने का इच्छा हुई। राजू के पिताजी उनको मना किये ,की तुम सिर्फ पढ़ाई में ध्यान  दो राजू ,तुम्हे एक नेक और ईमानदार अफसर बनना है। ताकि तुम एक अच्छे जिंदगी जी सको। राजू के पिताजी लाख मना करने पर राजू नहीं माना तो उनके पिताजी बोले की ठीक है तुमको एक शर्त में तुम्हे ले जाऊँगा। राजू ने बोला क्या शर्त पिताजी ? उनके पिताजी बोले तुम्हे सिर्फ आज ही ले जाऊँगा ,फिर कभी जिद्द मत करना और सिर्फ और सिर्फ पढ़ाई में ध्यान दोगे । 
 
राजू ये शर्त मानते हुए अपने पिताजी  के साथ खेतों की और चल पड़ा। राजू अपने पिताजी को देखा की उनके पिताजी दो बैल को ले के हल अपने कन्धों में उठा के चल रहे थे। ये देख राजू अपने पिताजी से पूछा की पिताजी ये हल कितना भारी है उनके पिताजी का जवाब आया की बहुत भारी है। फिर राजू ने अपने पिताजी को पूछा की क्या मैं भी उठा सकता हूँ, तो उनके पिताजी मुस्कुराते हुए बोले , नहीं बैठा तुम नहीं उठा सकते हो और तुम्हे उठाने की जरूरत नहीं है। पिता को हल उठता देख राजू अपने पिताजी को बोला की पिताजी मैं जब बड़ा हो जाऊंगा ना तो मैं आपके लिए ट्रैक्टर गाड़ी खरीद दूंगा , ये सुन राजू के पिताजी थोड़ा भावुक हो गए। 
 
बैल आगे-आगे , राजू और उनके पिताजी पीछे-पीछे चलते चलते खेतों में पहुंच गए। राजू के पिताजी जब अपने खेत में उतरे तो राजू भी उतर रहा गया। जब राजू के पिताजी खेती करना आरम्भ किये तब राजू भी ख़ुशी से अपने पिताजी को बोला की पिताजी मैं भी हल जोतूँगा। राजू के पिताजी बोले की बेटे मैं तुमको मेरे साथ आने तक का अनुमति दिया हूँ , खेतों में काम करने का नहीं बेटे। राजू अच्छे बच्चे जैसा अपने पिताजी की बात मान खड़े-खड़े अपने पिताजी को देखते ही रह रहा। कुछ ही घंटो में राजू को भूक लगने लगी,फिर राजू दर के मारे भूक लगने वाली बात अपने पिताजी को नहीं बताया। फिर समय बीतता गया और राजू को धुप बहुत लगने लगी। राजू अपने पिताजी को देख बहुत सोचने लगा की आखिर मेरे पिताजी को भूक और धुप क्यों नहीं महसूस हो रही है ,क्युकी मुझे तो बहुत जोरों से भूक और धुप लग रही है। 
                           फिर राजू बहुत दुखी होक पेड़ों के छाव में बैठ सोचने लगा की। पिताजी मेरे लिए मेरा जीवन कैसे अच्छे से बने और एक अफसर के रूप में बनूँ , ताकि मुझे ऐसे धुप और भूक का सामना ना करना पड़े। राजू ये सोच के दिल से राजू रोने को हो गया और दौड़ते हुए अपने पिताजी के पास जा के गले लगाके खूब रोने लगा। उनके पिताजी अपने बेटे राजू को देख , राजू को पूछने लगे की क्या हुआ राजू तुम रो क्यों रहे हो बेटे बताओ। राजू सिर्फ रोता ही रह रहा था कुछ बोल नहीं पा रहा था। फिर भी राजू के पिताजी समझ गए की राजू आखिर क्यों रोने लगा। फिर राजू के पिताजी खेतों से बाहर आये और दोनों फिर घर की और चले। फिर राजू के पिताजी और राजू घर पहुंच सवेरे क्क बनाया हुआ खाना खाने लगे। राजू बिलकुल चुप मायूस जैसा खाना देख आंसू बहा-बहा के खाने लगा। राजू के पिताजी सब कुछ समझ रहे थे, पर कुछ भी राजू को नहीं बोल रहे थे। क्युकी उनके पिताजी जानते थे की अगर मैं कुछ बोला तो राजू मेरे तख़लीफ़ से और उदास हो जयेगा।
 
रात हो गयी और राजू अपने पिताजी के साथ उनके पास ही सो गया। राजू के मन में बस यही चल रहा था , की मेरे पिताजी इतना तख़लीफ़ में सिर्फ मेरे जिंदगी अच्छे करने लिए इतना मेहनत कर रहे है। पर राजू को ये लग रहा था की जिंदगी तो मेरा सुधर जायेगा पर मेरे पिताजी को क्या लाभ होगा। सोचते - सोचते राजू सो गया। सवेरे उठ के राजू अपने विद्यालय जाते हुए भी सोच रहा था की आखिर जिंदगी तो मेरा अच्छा हो जायेगा पर पिताजी को क्या लाभ होगा। यहीं मन में प्रश्न लिए रहता था पर अपने पिताजी से पूछने का हिम्मत नहीं हो रहा था। राजू पढ़ते गया विद्यालय से अब महाविद्यालय में ताखिला हुआ। फिर भी राजू के मन में इतने वर्षो से मन में प्रश्न यहीं था की मेरे जिंदगी अच्छे होने से पिताजी को क्या लाभ होगा अब तो पिताजी बूढ़े होने चले। राजू पढ़ते - पढ़ते महाविद्यालय उत्तीर्ण होके अब अफसर बनने के लिए पढ़ाई करके राजू अपने पिताजी की मेहनत से अफसर बन गया और अपने पिताजी को बताया पिताजी मैं अफसर बन गया । राजू के पिताजी के आँखों से आंसू बहता रहा। राजू अपने पिताजी को गले लगा के चुप करने की कोशिश कर रहा था,पर उसके पिताजी रोते-रोते कहने लगे बेटा मेरी मेहनत काम आ गयी ,मेरी मेहनत विफल नहीं रहा। तब राजू को अपना मन का प्रश्न का उत्तर मिल गया की ,पढ़ाई तो मैं कर रहा था पर असली मेहनत मेरे पिताजी कर रहे थे और यहीं मेरे पिताजी का लाभ था। फिर सवेरे होते ही राजू ने अपने पिताजी से कहा की पिताजी चलिए अब अपने नया घर में जहाँ मेरी अफसर की नौकरी लगी है। उसके पिताजी ने मना कर दिया की बेटा तुम जाओ मैं तो नहीं आ पाउँगा क्युकी अब खेती-बाड़ी से दिल लग गया है ,खेती बाड़ी को छोड़ मैं नहीं रह पाउँगा। राजू ने दिन भर अपने पिताजी को मनाया पर पिताजी नहीं माने राजू भी पिताजी की दिल का बात समझ गया की पिताजी किसान है और किसान का सबसे प्यारा उनका खेत ही होता है। रात से सवेरे हो गयी तो राजू के पिताजी जैसे उठ के बाहर गए तो देखा की एक नया ट्रैक्टर लगा हुआ है। राजू के पिताजी राजू से पूछते हुए कहा की बेटा राजू ये ट्रैक्टर किसका है बेटा। राजू ने अपने पिताजी से कहा ,पिताजी आप भूल गए ना मैंने बचपन में आपसे कहा था की अफसर बनते ही आपके लिए ट्रैक्टर खरीद दूंगा। राजू के पिताजी वो दिन याद कर थोड़ा भावुक हो गए। और अपने प्यारे बेटे राजू को गले लगा लिए। 
                                             
                                                                                      लेखक :- शिव शम्भू मरांडी 
                                                                                          ( झारखण्ड, जामतारा )

                       



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